शारदा सिन्हा:The Sharda Sinha Voice of Bhojpuri

शारदा सिन्हा (Sharda Sinha Voice of Bhojpuri) भारत में भोजपुरी और मैथिली लोक संगीत का पर्याय हैं । अपनी दमदार आवाज़ और पारंपरिक संगीत को संरक्षित करने के प्रति समर्पण के लिए जानी जाने वाली शारदा सिन्हा ने भारतीय लोक संस्कृति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। दशकों के करियर के साथ, शारदा सिन्हा एक आइकन बन गई हैं, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में, जहाँ उनके गीत रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा हैं, खासकर त्योहारों और समारोहों के दौरान। आइए दिग्गज शारदा सिन्हा की प्रेरक यात्रा और उपलब्धियों के बारे में जानें। Bhojpuritrend शारदा सिन्हा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
Sharda Sinha Voice of Bhojpuri – प्रारंभिक जीवन और लोक संगीत में जड़ें
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर, 1952 को बिहार के एक छोटे से जिले समस्तीपुर में हुआ था। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध वातावरण में पली-बढ़ी, वह कम उम्र से ही लोक संगीत, शास्त्रीय धुनों और क्षेत्रीय कला रूपों से परिचित हो गई थीं। उनके परिवार ने उनकी संगीत रुचियों का समर्थन किया, और उन्होंने शास्त्रीय गायन सीखना शुरू किया, जिसने उनकी संगीत यात्रा के लिए एक मजबूत नींव रखी। बिहार की संस्कृति और इसकी अनूठी ध्वनियों के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को इस तरह से अपनाने के लिए प्रेरित किया, जिसमें भोजपुरी, मैथिली और मगही का प्रभाव शामिल था। उनका संगीत सिर्फ़ धुनों के बारे में नहीं है; यह बिहार की समृद्ध परंपराओं, कहानी कहने और मूल्यों का जश्न मनाने के बारे में है।
करियर की शुरुआत और प्रसिद्धि
शारदा सिन्हा का करियर 1970 के दशक में शुरू हुआ, जब उन्होंने स्थानीय समारोहों, त्योहारों और कार्यक्रमों में भोजपुरी और मैथिली लोकगीतों का प्रदर्शन करना शुरू किया। उनकी अनूठी आवाज़ और लोक शैलियों पर पकड़ ने लोगों का ध्यान जल्दी ही अपनी ओर आकर्षित कर लिया। उनके शुरुआती गाने पारंपरिक धुनों और थीम पर आधारित थे, जो दर्शकों को पसंद आए और जो उनके सांसारिक और भावपूर्ण संगीत से जुड़ पाए।
उन्हें बड़ा ब्रेक तब मिला जब उनके गाने ऑल इंडिया रेडियो (AIR) और बाद में भारत के राष्ट्रीय टेलीविज़न नेटवर्क दूरदर्शन पर प्रसारित होने लगे। इस प्रदर्शन ने उनके लोकगीतों को लाखों घरों तक पहुँचाया, जिससे उनकी आवाज़ भोजपुरी और मैथिली भाषी क्षेत्रों में एक खास पहचान बन गई।
लोकप्रिय गीत और उनका सांस्कृतिक प्रभाव – Sharda Sinha Voice of Bhojpuri
शारदा सिन्हा की लोकप्रियता त्योहारों, खासकर छठ पूजा, जो बिहार के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, के दौरान उनके पारंपरिक गीतों के गायन से आसमान छू गई। उनका गीत “हो दीनानाथ” छठ के दौरान लगभग एक सांस्कृतिक गान है, जो श्रद्धा और भक्ति का सार प्रस्तुत करता है। उनके अन्य लोकप्रिय गीतों में शामिल हैं:
“पनिया के जहाज से“ – एक ऐसा गीत जो ग्रामीण बिहार में प्रवास के कारण अक्सर परिवारों द्वारा महसूस किए जाने वाले अलगाव और लालसा की भावना को खूबसूरती से दर्शाता है।
“सासु जी से लुटरी” – एक चंचल और हास्य गीत जो शादियों में हिट रहा है, जो क्षेत्रीय आकर्षण के साथ खुशी के माहौल का जश्न मनाता है।
“काहे तो से सजनी” – अपनी खूबसूरत धुन के लिए जाना जाने वाला यह गीत अपनी भावनात्मक गहराई के लिए दर्शकों के बीच पसंदीदा है।
उनके गीतों में एक चिरस्थायी अपील है क्योंकि वे ग्रामीण पृष्ठभूमि से लोगों, खासकर महिलाओं के सुख, दुख, आशा और सपनों को दर्शाते हैं। भोजपुरी और मैथिली लोक संगीत पर उनका प्रभाव गहरा है, क्योंकि उन्होंने इन कला रूपों को जीवित रखा है और उन्हें भारतीय संगीत में अग्रणी स्थान पर लाया है।
उपलब्धियाँ और मान्यताएँ
भारतीय लोक संगीत में शारदा सिन्हा के योगदान को कई प्रतिष्ठित मंचों पर मान्यता मिली है। उनके संगीत और समर्पण ने उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान दिलाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
पद्म भूषण (2018): यह भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक है, जो उन्हें कला में उनके योगदान के लिए दिया गया है, विशेष रूप से लोक संगीत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में।
पद्म श्री (1991): उन्हें पारंपरिक भारतीय संगीत के क्षेत्र में उनकी उत्कृष्टता के लिए यह सम्मान मिला, भोजपुरी और मैथिली संगीत को बड़े दर्शकों तक पहुँचाने के उनके प्रयासों को मान्यता दी गई।
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार: संगीत, नृत्य और नाटक के लिए भारत की प्रमुख राष्ट्रीय संस्था ने उन्हें भारतीय लोक संगीत में उनके योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया।
उन्हें संगीत के प्रति समर्पण और इन क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के उनके प्रयासों के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश भर के सांस्कृतिक संस्थानों से कई पुरस्कार भी मिले हैं।
उनके पुरस्कार और मान्यताएँ यह सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका का प्रमाण हैं कि पारंपरिक लोक संगीत को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मंचों पर वह सम्मान और मान्यता मिले जिसका वह हकदार है।
विरासत और निरंतर प्रभाव: Sharda Sinha Voice of Bhojpuri
पुरस्कारों से परे, शारदा सिन्हा की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि बिहार की सांस्कृतिक पहचान पर उनके प्रभाव में निहित है। दशकों से, उनके गीत बिहारी त्योहारों, समारोहों और यहाँ तक कि दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं। युवा पीढ़ी भी उनके काम से प्रेरित हुई है, भोजपुरी और मैथिली लोक संगीत के कई उभरते कलाकार उन्हें एक रोल मॉडल के रूप में देखते हैं।
उन्होंने संगीत के बदलते रुझानों के समय में पारंपरिक संगीत को प्रासंगिक बनाए रखने में सफलतापूर्वक कामयाबी हासिल की है। ऐसा करके, उन्होंने भोजपुरी और मैथिली सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवित रहे। शारदा सिन्हा कला में महिलाओं की आवाज़ की भी वकालत करती रही हैं, खासकर क्षेत्रीय और लोक संगीत में, युवा महिलाओं को संगीत को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती रही हैं।
छठ गीतों की प्रतीक (Sharda Sinha Voice of Bhojpuri)
दशकों से, शारदा सिन्हा छठ पूजा के दौरान घरों में गूंजने वाली आवाज़ रही हैं। छठ गीतों में उनका योगदान बेजोड़ है, क्योंकि उन्होंने इस त्योहार से जुड़े पारंपरिक लोकगीतों को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अपने संगीत के माध्यम से, उन्होंने छठ के सार को पकड़ लिया है, इसे उन लोगों तक पहुँचाया है जो इन परंपराओं के साथ बड़े नहीं हुए हैं, लेकिन अपनी जड़ों से फिर से जुड़ना चाहते हैं। उनके गायन में त्योहार की भावना जीवंत हो जाती है, जो भक्ति, कृतज्ञता और सामुदायिक बंधन का प्रतीक है।
शारदा सिन्हा के लोकप्रिय छठ गीत
शारदा सिन्हा के छठ गीत लाखों लोगों द्वारा पूजे और पसंद किए जाते हैं। प्रत्येक गीत एक अनूठी कहानी बताता है और साथ ही दिव्य आशीर्वाद भी देता है। यहाँ उनके कुछ सबसे लोकप्रिय छठ गीत हैं जो त्योहार का पर्याय बन गए हैं:
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- “हो दीनानाथ“
“हो दीनानाथ” शारदा सिन्हा के सबसे प्रसिद्ध छठ गीतों में से एक है। यह गीत सूर्य देव से प्रार्थना के रूप में गाया जाता है, जिसमें आशीर्वाद की याचना की जाती है और स्वास्थ्य और खुशी के लिए उनकी कृपा की कामना की जाती है। शारदा सिन्हा की गहरी, मधुर आवाज़ पूजा की श्रद्धा और पवित्रता को पूरी तरह से दर्शाती है।
- “हो दीनानाथ“
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- “पटना के घाट पे“
छठ के दौरान पटना के घाटों (नदी के किनारों) पर माहौल का वर्णन करने वाला एक गीत, “पटना के घाट पे” नदी के किनारे अनुष्ठान करने के लिए एकत्रित होने वाले भक्तों के हलचल भरे लेकिन शांत वातावरण को दर्शाता है। यह सामुदायिक भावना को श्रद्धांजलि है जो छठ पूजा की विशेषता है, खासकर गंगा के किनारे।
- “पटना के घाट पे“
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- “केलवा के पट पर“
“केलवा के पट पर” में, शारदा सिन्हा केलवा (केले के पेड़) के पत्ते पर डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देने की रस्म के बारे में गाती हैं। यह गीत परंपरा में गहराई से निहित है और अनगिनत छठ समारोहों की यादों को ताजा करते हुए एक क्लासिक बन गया हैI
- “केलवा के पट पर“
उनका प्रभाव सिर्फ़ बिहार तक सीमित नहीं है; दुनिया भर में भोजपुरी और मैथिली भाषी समुदाय सांस्कृतिक गौरव की उनकी प्रामाणिक अभिव्यक्ति के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं। अपने संगीत के ज़रिए, उन्होंने अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों को बिहार और उसके समृद्ध लोकगीतों के सार से जोड़ा है, जिससे एकता और सांस्कृतिक गौरव की भावना को बढ़ावा मिला है।
निष्कर्ष: बिहार की सदाबहार आवाज़
बिहार के एक छोटे से शहर से भोजपुरी और मैथिली लोक संगीत की आवाज़ बनने तक की शारदा सिन्हा की यात्रा प्रेरणादायक और प्रभावशाली है। भावनाओं को व्यक्त करने, कहानियाँ सुनाने और परंपराओं को जीवित रखने की उनकी क्षमता ने उन्हें भारतीय संगीत में एक प्रिय व्यक्ति बना दिया है। उनके गीत सिर्फ़ धुन नहीं हैं बल्कि एक समुदाय की आत्मा को समेटे हुए हैं, जो उन्हें एक सच्ची सांस्कृतिक प्रतीक बनाता है। Bhojpuritrend भोजपुरी भाषा, फिल्म, गाने और कलाओं को पूरे विश्व में फैलाना चाहता है।
जैसा कि शारदा सिन्हा अपने संगीत से दिलों को छूती रहती हैं, उनकी विरासत निस्संदेह अनगिनत लोगों को भारतीय लोक संस्कृति को संजोने, संरक्षित करने और मनाने के लिए प्रेरित करेगी।
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