Bhojpuri Kavi – Poets from Bihar : बिहार के कुछ साहित्यिक दिग्गज

समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की भूमि बिहार ने भारत के कुछ महान कवियों और लेखकों को जन्म दिया है। कई विधाओं में उनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है और पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है। यहाँ बिहार के शीर्ष 10 साहित्यिक प्रतीकों को श्रद्धांजलि दी गई है: Bhojpuri Kavi – Poets from Bihar
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विद्यापति (1352-1448) Bhojpuri Kavi – Poets from Bihar
मैथिल कोकिल (मैथिली की कोकिला) के रूप में जाने जाने वाले विद्यापति एक प्रसिद्ध कवि और संत थे, जिनकी मैथिली और संस्कृत में रचनाएँ आज भी संजोई जाती हैं।उन्होंने प्रेम गीत और भक्ति गीत भी लिखे। उनकी रोमांटिक कविताएँ, विशेष रूप से भगवान शिव और राधा-कृष्ण को समर्पित, एक काव्यात्मक आकर्षण और गहन भावनात्मक गहराई रखती हैं। उनकी रचनाओं ने मैथिली साहित्यिक परंपरा को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया। विद्यापति ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे भारत के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित किया है। वे चैतन्य महाप्रभु के शिष्य थे।

प्रसिद्ध कृति: पदावली (प्रेम गीतों का संग्रह)।
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भिखारी ठाकुर (1887-1971) Bhojpuri Kavi – Poets from Bihar
भोजपुरी के शेक्सपियर “राय बहादुर” कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर एक नाटककार, कवि और समाज सुधारक थे। भोजपुरी में लिखे गए उनके नाटकों और कविताओं में जातिगत भेदभाव, पलायन और महिला सशक्तिकरण जैसे सामाजिक मुद्दों को संबोधित किया गया। उन्होंने लोगों से जुड़ने के लिए लोक रंगमंच, खास तौर पर बिदेसिया का इस्तेमाल किया। बीसवीं सदी के आरंभ में भिखारी ठाकुर अपने गाँव लौट आए और एक छोटी मंडली के साथ रामलीला प्रस्तुत करना शुरू किया। उनके अधिकांश नाटक महिलाओं, गांव के लोगों की दुर्दशा और पुराने मूल्यों और आधुनिक मूल्यों के बीच टकराव के इर्द-गिर्द घूमते थे। ठाकुर द्वारा लिखा गया पहला नाटक बिरहा बहार और उनका था।

सम्मान : पद्मश्री
प्रसिद्ध कृति: बिदेसिया (प्रवास और लालसा पर एक नाटक)।
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फणीश्वर नाथ रेणु (1921-1977) Bhojpuri Kavi – Poets from Bihar
आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘फणीश्वर नाथ रेणु’ (Phanishwar Nath Renu) प्रसिद्ध आंचलिक साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन का सुंदर चित्रण देखने को मिलता है, वहीं उनकी रचनाओं को पढ़कर ऐसा लगता है मानों ग्रामीण जीवन के साक्षात दर्शन हो रहे हो। फणीश्वर नाथ रेणु एक लेखक होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई थी। इसके साथ रेणु जी ने अपनी विशिष्ठ भाषा शैली हिंदी कथा साहित्य को एक नया आयाम दिया था। वहीं आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए फणीश्वर नाथ रेणु जी को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। बता दें कि फणीश्वर नाथ रेणु की कई रचनाएं जिनमें ‘मैला आँचल’, ‘परती परिकथा’ और ‘कितने चौराहे’ (उपन्यास) ‘मारे गए गुलफाम’ (तीसरी कसम), ‘एक आदिम रात्रि की महक’, ‘लाल पान की बेगम’ और ‘पंचलाइट’ (कहानियाँ) आदि को विद्यालय के साथ ही बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं।

सम्मान : पद्मश्री (वर्ष 1970)
प्रसिद्ध कृति: मैला आंचल (गंदी सीमा)।
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रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974) Bhojpuri Kavi – Poets from Bihar
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय: रामधारी सिंह दिनकर अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय भाव को जनमानस की चेतना में नई स्फूर्ति प्रदान करने वाले कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें हिंदी साहित्य के कालखंड में ‘छायावादोत्तर काल’ का प्रमुख कवि माना जाता है, इसके साथ ही उन्हें प्रगतिवादी कवियों में भी उच्च स्थान प्राप्त हैं। रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में गद्य और पद दोनों ही धाराओं में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। वह एक कवि, पत्रकार, निबंधकार होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। क्या आप जानते हैं रामधारी दिनकर जी को ‘क्रांतिकारी कवि’ के रूप में भी ख्याति मिली हैं। उन्होंने ‘रश्मिरथी’, ‘कुरूक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ जैसी रचनाओं में अपनी जिस काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया, वह हिंदी साहित्य जगत में अविस्मरणीय रहेगा। आइए अब हम ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

सम्मान : साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म भूषण आदि।
प्रसिद्ध कृति: रश्मिरथी (महाभारत में कर्ण के जीवन का एक काव्यात्मक पुनर्कथन)।
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नागार्जुन (1911-1998)
जून 1911 में जन्मे वैद्यनाथ मिश्र, जिन्हें नागार्जुन के नाम से जाना जाता है, हिंदी और मैथिली के कवि थे, जिन्होंने कई उपन्यास, लघु कथाएँ और यात्रा वृत्तांत लिखे। वे जनकवि के नाम से लोकप्रिय थे। उन्हें मैथिली में आधुनिकता के सबसे प्रमुख नायकों में से एक माना जाता है।उनकी कविताओं के विषय विविध हैं। उनकी घुमक्कड़ी प्रवृत्ति और सक्रियता दोनों के प्रभाव उनके मध्य और बाद के कार्यों में स्पष्ट हैं। उनकी प्रसिद्ध कविताएँ जैसे बादल को घिराते देखा है, अपने आप में एक यात्रा वृत्तांत है। उन्होंने अक्सर समकालीन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लिखा। उनकी प्रसिद्ध कविता मंत्र कविता, व्यापक रूप से भारत में एक पूरी पीढ़ी की मानसिकता का सबसे सटीक प्रतिबिंब माना जाता है। ऐसी ही एक और कविता है आओ रानी हम ढोएंगे पालकी, जो तत्कालीन भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा (1961) में महारानी एलिजाबेथ के भव्य स्वागत के लिए व्यंग्यात्मक रूप से अपमानित करती है।कविता के इन स्वीकृत विषयों के अलावा, नागार्जुन ने अपरंपरागत विषयों में भी काव्य सौंदर्य पाया। उनकी सबसे आश्चर्यजनक कृतियों में से एक विद शार्प टीथ नामक शो पर आधारित कविता है। ऐसी ही एक और रचना एक पूर्ण विकसित कटहल पर कविताओं की एक श्रृंखला है।अपनी कविता की व्यापकता के कारण, नागार्जुन को तुलसीदास के बाद एकमात्र हिंदी कवि माना जाता है।

सम्मान : साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘भारत-भारती पुरस्कार’, ‘राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार’, ‘शिखर सम्मान
प्रसिद्ध कृति: बादलों को घिरते देखा है (एक प्रसिद्ध हिंदी कविता)।
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भवानी भट्टाचार्य (1906-1988)
भवानी भट्टाचार्य भारत के शुरुआती अंग्रेजी उपन्यासकारों में से एक थे जिन्होंने पारंपरिक और फिर उपयुक्त विषय – स्वतंत्रता संग्राम और फिर स्वतंत्रता के बाद की अराजकता के अलावा अपने वैकल्पिक विषयों के साथ कथा लेखन की दिशा बदलने की कोशिश की। इसके बजाय, भवानी भट्टाचार्य ने अन्य मुद्दों जैसे कि ग्रामीण-शहरी विभाजन, पूर्व-पश्चिम विभाजन और मानव जीवन से संबंधित अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। आप उनके उपन्यासों में विभिन्न मुद्दों को संभाले जाने और कभी-कभी गलत तरीके से संभाले जाने को भी पा सकते हैं। भवानी भट्टाचार्य का जन्म 10 नवंबर 1906 को भागलपुर (तत्कालीन बंगाल) में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पटना विश्वविद्यालय में हुई और वहीं से उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बाद की शिक्षा लंदन में हुई और वहीं से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। भारत लौटने के बाद वे राजनयिक सेवा में शामिल हुए और अमेरिका में सेवा की और बाद में, अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने साहित्य पढ़ाना भी शुरू कर दिया। इस बीच, अपने जीवन में इन सब घटनाओं के बीच, उन्होंने अपने जीवन का एक चौथाई हिस्सा बीत जाने के बाद लेखन भी शुरू कर दिया। भभनी भट्टाचार्य की कथा:“कला को सिखाना चाहिए, लेकिन विनीत रूप से, जीवन की अपनी विशद व्याख्याओं के माध्यम से। कला को उपदेश देना चाहिए, लेकिन केवल सत्य के वाहक होने के कारण। यदि यह प्रचार है, तो इस शब्द का त्याग करने की कोई आवश्यकता नहीं है।”

सम्मान : साहित्य अकादमी – 1967 (छाया लद्दाख से)
प्रसिद्ध कृति: सो मेनी हंगर्स! (अकाल और उसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव के बारे में एक उपन्यास)।
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हरिवंश राय बच्चन (1907-2003)
हालावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि हरिवंशराय बच्चन का जन्म इलाहाबाद के चक मोहल्ले में एक संभ्रांत कायस्थ परिवार में 27 नवंबर 1907 को हुआ। उन्हें नाम दिया गया ‘हरिवंशराय’ और घर में उन्हें प्यार से ‘बच्चन’ पुकारा जाता था। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. की परीक्षा पास की और वहीं अध्यापन करने लगे। 1952 में विलियम बटलर येट्स के साहित्य पर शोध के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय गए। स्वदेश वापसी पर आकाशवाणी में प्रोड्यूसर बने, फिर 1955 में विदेश मंत्रालय में ‘हिंदी विशेषाधिकारी’ के रूप में नियुक्त किए गए। 1966 में राष्ट्रपति द्वारा उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। उनकी कविता-यात्रा बचपन से ही शुरू हो गई थी और स्कूली दिनों से तुकबंदियाँ करने लगे थे। 1933 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए कवि-सम्मेलन में उनके द्वारा ‘मधुशाला’ के पाठ को श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया और धीरे-धीरे उनकी मंचीय ख्याति इतनी बढ़ गई कि प्रेमचंद ने भी एक बार कहा कि मद्रास में भी यदि कोई किसी हिंदी कवि का नाम जानता है तो वह बच्चन का नाम है। उनका प्रथम विवाह श्यामा से 1927 में हुआ। 1936 में पैसे के अभाव में क्षयरोग के अधूरे इलाज के कारण श्यामा की मृत्यु हो गई। उनका दूसरा विवाह 1942 में तेजी सूरी से हुआ। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘तेरा हार’ 1932 में प्रकाशित हुआ। 1935 में प्रकाशित उनका दूसरा संग्रह ‘मधुशाला’ उनकी स्थायी लोकप्रियता और प्रसिद्धि का कारण बना। बच्चन मधुशाला का पर्याय ही बन गए। इन दोनों काव्य-संग्रहों के अतिरिक्त उनके दो दर्जन से अधिक अन्य संग्रह प्रकाशित हुए। कविताओं के अलावे उनकी आत्मकथाएँ और उनके अनुवाद भी हिंदी में उनकी स्थायी यशःकीर्ति का कारण हैं। उन्होंने बाल-साहित्य और निबंध लेखन भी किया।

सम्मान : पद्मभूषण(1976) ,साहित्य अकादमी, आदि
प्रसिद्ध कृति: मधुशाला (चतुर्धातुओं का संग्रह)।
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रामबृक्ष बेनीपुरी (1899-1968)
भारत के एक महान विचारकों व क्रान्तिकारी,साहित्यकार, पत्रकार, संपादक रामवृक्ष बेनीपुरी (Rambriksh Benipuri) एक अलौकिक छवि के धनी थे । अध्ययन छोड़कर वह स्वतंत्रता-आन्दोलन में सम्म्लित हो गये थे. इस कारण मैट्रिक के पश्चात् इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया। वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार रहे । रामवृक्ष बेनीपुरी (Rambriksh Benipuri) गद्य-लेखक, शैलीकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सेवी और हिंदी प्रेमी के रूप में अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ी है। बेनीपुरी जी राष्ट्र-निर्माण, समाज-संगठन और मानवता के जयगान को लक्षय मानकर बेनीपुरी जी ने ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि विविध गद्य-विधाओं में जो महान रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे आज की युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी (Rambriksh Benipuri) सन् 1931 ई. में ‘समाजवादी दल’ की स्थापना की और सन् 1957 ई. में इस दल के प्रत्याशी के रूप में बिहार विधानसीाा के सदस्य निर्वाचित हुए थे । इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आठ वर्ष जेल में व्यतीत किये थे। वर्ष 1920 ई. में रामवृक्ष बेनीपुरी (Rambriksh Benipuri) महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भी शामिल रहे थे. 1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् आपने साहित्य-साधना के साथ-साथ देश और समाज के नवनिर्माण कार्य में अपने को हमेशा जोड़े रखा जोड़े रखा। 9 सितंबर, 1968 को रामवृक्ष बेनीपुरी (Rambriksh Benipuri) इस संसार से विदा हो गये। रामवृक्ष बेनीपुरी को ‘‘ कमल का जादूगर ’’ भी कहां जाता हैं।

सम्मान : वर्ष 1999 में ‘भारतीय डाक सेवा’ द्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिंदी को राष्ट्रभाषा अपनाने की अर्धराती वर्ष में डाक टिकटों का एक संग्रह जारी किया। उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा ‘वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ दिया जाता है।
प्रसिद्ध कृति: पतितों के देश में (उपन्यास)
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उपेंद्र नाथ अश्क (1910-1996)
हिंदी साहित्य में ‘उपेन्द्रनाथ अश्क’ (Upendranath Ashk) आधुनिक काल में ‘शुक्लोत्तर युग’ के प्रमुख कथाकार, उपन्यासकार एकांकीकार और नाट्यकार माने जाते हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य में पद्ययात्मक और गद्ययात्मक दोनों ही विधाओं में साहित्य का सृजन किया। अश्क जी की सृजनात्मक साहित्य में नाटक, कहानी, उपन्यास, एकांकी, काव्य, संस्मरण और रेखाचित्र शामिल हैं। वहीं साहित्य में उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ और ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। आपको बता दें कि उपेन्द्रनाथ अश्क की रचनाओं को विद्यालय के अलावा बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी उपेन्द्रनाथ अश्क का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

सम्मान : सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
प्रसिद्ध कृति: गिरती दीवारें (गिरती दीवारें)।
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निर्मल वर्मा (1929-2005)
Nirmal Verma Ka Jivan Parichay : निर्मल वर्मा (Nirmal Verma) हिंदी साहित्य में ‘आधुनिक काल’ के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक माने जाते हैं। हिंदी साहित्य में कहानी और उपन्यास विधा में आधुनिकता का बोध लाने में उनका नाम अग्रणी है। निर्मल वर्मा ने हिंदी गद्यात्मक साहित्य में कई विद्याओं में साहित्य का सृजन किया, जिनमें कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, यात्रा वृतांत और अनुवाद कार्य शामिल हैं। वहीं, साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका हैं, इनमें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ (वर्ष1999), ‘पद्म भूषण’ (वर्ष 2002) व ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (वर्ष 1985) जैसे सर्वोच्च सम्मान शामिल हैं। निर्मल वर्मा हिंदी साहित्य के उन विख्यात लेखकों में से एक हैं, जिनकी अनेक रचनाएँ जिनमें ‘परिंदे‘ (कहानी), ‘वे दिन‘, ‘लाल टीन की छत‘ व ‘रात का रिपोर्टर’ (उपन्यास) तथा ‘चीड़ों पर चाँदनी’ (यात्रा-वृतांत) आदि देश के अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शमिल है। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी निर्मल वर्मा का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

सम्मान : ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘पद्म भूषण’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार
प्रसिद्ध कृति: सांस्कृतिक और भावनात्मक विषयों को दर्शाने वाले निबंध और पटकथाएँ।
बिहारी साहित्य की विरासत
बिहार के कवियों और लेखकों ने अपने विविध योगदानों से भारतीय साहित्य में एक अनूठी जगह बनाई है। चाहे मैथिली हो, भोजपुरी हो, हिंदी हो या अंग्रेजी, उनकी रचनाएँ प्रेम, संघर्ष और मानवता के सार्वभौमिक विषयों से जुड़ी हैं।
बिहार की साहित्यिक विरासत लगातार फल-फूल रही है, जो स्थापित और उभरते लेखकों को इसकी समृद्ध विरासत की मशाल को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है।
इनमें से कौन सी साहित्यिक हस्ती आपकी पसंदीदा है? हमें कमेंट में बताएं!
